Tuesday 5 November 2013

मैं हूं मौन !


मैं हूं कौन ?
मैं हूं मौन!
महिलाओं की चैन लुटती रही
सरे राह।
दामिनी-दिल्ली की असिमता बनी
लाचारी।
सड़क पर बिफर गर्इ
बेचारी।
और मैं मोमबत्ती जलाकर देखता रहा!
मैं कायर हूं ? नहीं!
कायरता नहीं मुझमें!
बस उन अबलाओं और अपने घरों की सुरक्षा में
सेंध देखता रहा !
और मैं मौन रहा।1

तंत्र की लाठी
बेवजह चलती रही
अविराम!
नौकरशाही घोटाले अथ.
नेताओं का खुला भ्रष्टाचार
उजाड़!
कनूनी दांव-पेंच से कतराता रहा
मैं चुप, सब देखता-सुनता रहा!
मैं अंधा हूं ! नहीं।
जड़ता नहीं मुझमें!
बस स्वयं की रोजी
और बच्चों की शिक्षा में
दरार देखता रहा!
और मैं मौन रहा।2

बेटा मथुरा शान
जवान!
ये देश की कैसी मजबूरी
कटा दिया सिर को ना बेची
खुददारी!
भीड़ ने ही दिया श्रध्दांजलि
पिस कर यहां!
इणिडया गेट पर जवान-ज्योति
बस! कराहती रही।
मैं गददार हूं? नहीं।
गददारी नही मुझमें
बस! बेहद सर्द मौसम मे खड़ा
मैं पानी और पानी की धार देखता रहा!
और मैं मौन रहा।3

के0पी0सत्यम  अप्रकाशित


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