Monday 28 October 2013

हार्इकू (सत्ता ही भत्ता)

हार्इकू (सत्ता ही भत्ता)
//1//

कन्या कुमारी
फैशन की बीमारी
पार्क घुमा री!
//2//

सुन्दर बेटी
भारतीय संस्कार
फूटती ज्वाला।
//3//

बेटी गहना
जुआरी क्या कहना
नेता आर्इना।
//4//

जय माता दी!
धार्मिक बोलबाला
देश में हिंसा।
//5//

लोक तंत्र क्या?
बलवा-व्यभिचार
जनता उदास।
//6//

बेरोजगार
हिंसा का पुरजोर
सत्ता ही भत्ता।
//7//

कटटरवाद
मानसिक विक्षिप्त
दंगा व्यसनी।
के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

हार्इकू (सत्ता ही भत्ता)

हार्इकू (सत्ता ही भत्ता)
//1//

कन्या कुमारी
फैशन की बीमारी
पार्क घुमा री!
//2//

सुन्दर बेटी
भारतीय संस्कार
फूटती ज्वाला।
//3//

बेटी गहना
जुआरी क्या कहना
नेता आर्इना।
//4//

जय माता दी!
धार्मिक बोलबाला
देश में हिंसा।
//5//

लोक तंत्र क्या?
बलवा-व्यभिचार
जनता उदास।
//6//

बेरोजगार
हिंसा का पुरजोर
सत्ता ही भत्ता।
//7//

कटटरवाद
मानसिक विक्षिप्त
दंगा व्यसनी।
के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

Wednesday 16 October 2013

!!! सारांश !!!

!!! सारांश !!!
बह्र - 2 2 2

कर्म जले।
आंख मले।।

धर्म कहां?
पाप पले।

नर्म गजल,
कण्ठ फले।

राह तेरी ,
रोज छले।

हिम्मत को,
दाद भले।

गर्म हवा,
नीम तले।

जीवन क्या?
हाड़ गले।
आफत में,
बह्र खले।

प्रीत करों,
बन पगले।

विव्हल मन,
शब्द टले।

दृषिट मिली,
सांझ ढले।

गर मुफलिस,
बात टले।
कण्टक पथ,
सत्य फले।
दुष्ट यहां,
हाथ मले।

के0पी0सत्यम / मौलिक एवं अप्रकाशित

!!! एक 'बापू फिर बुला मां शारदे !!!

!!! एक 'बापू फिर बुला मां शारदे !!!
बह्र-2122   2122   2122  212

प्यार जीवन में बढ़ा मां शारदे।
दर्द मुफलिस का घटा मां शारदे।।

कंट के रस्ते भी फूलों से लगे,
राम का वनवास गा मां शारदे।

भील-शोषित का यहां उध्दार हो,
एक 'बापू फिर बुला मां शारदे।

धर्म का रथ आस्मां को जा रहा,
गर्त में धरती उठा मां शारदे।

आततायी रोज बढ़ते जा रहे,
फिर शिवा-राणा बना मां शारदे।

लेखनी का रंग गहरा हो चटक,
घाव पर मलहम लगा मां शारदे।

दृढ़ करें संवेदना सदभाव से,
आप ही परमात्मा मां शारदे।

कर्म का फल भूल जाओं धर्म में,
भाव 'सत्यम साधना मां शारदे।

के0पी0सत्यम मौलिक व अप्रकाशित

Sunday 13 October 2013

'स्तुति'

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ds0ih0lR;e@ekSfyd o vizdkf”kr@30-12-1990

निर्गुन

                                                         
 निर्गुन



रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।

नगर का शोर छोड़ कर ध्याउ,
जहा बजे शंख और ढोल।
रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।1

प्यार का घर ममता सब त्यागू,
फसू मनिदर और दरगाह।
रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।2

पाहन पूजू गिरि पर चढि़-चढि़,
भूखा रहू दिन और रात।,
रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।3

दर-दर ढ़ूढू नगर-सगर में,
ढूढू वन और रेगिस्तान।,
रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।4

सत्यम शिव मन में निहित है,
छोड़ो द्वेष और अभिमान।
रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।5


   ds0ih0lR;e@ekSfyd o vizdkf”kr0@21.09.1991