Tuesday 5 November 2013

!!! झुका हुआ है गगन आंधियां चलाने से !!


1212  1122  1212  22

ये चांद रात जलें, दास्तां जमाने से।
नदी-लहर में खुशी, चांदनी बहाने से।।

उठो चलो कि बहारें तुम्हें बुलाती हैं।
चमन में फूल खिलाओ बसंत आने से।।

ये वादियां ये नजारें सभी सुहाने से।
झुका हुआ है गगन आंधियां चलाने से।।

दिया है मान जिसे शाम ही डंसे मुझको।
यहीं मिला है खुदा आत्मा जगाने से।।

रूलाए खून के आंसू, बता रहे मूंगा।
नसीहतों से भरी राह, खौफ-ताने से।।

मुझे ये डर है कि बेमौत मर न जाएं हम।
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से।

के0पी0सत्यममौलिक व अप्रकाशित


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