Wednesday 16 October 2013

!!! सारांश !!!

!!! सारांश !!!
बह्र - 2 2 2

कर्म जले।
आंख मले।।

धर्म कहां?
पाप पले।

नर्म गजल,
कण्ठ फले।

राह तेरी ,
रोज छले।

हिम्मत को,
दाद भले।

गर्म हवा,
नीम तले।

जीवन क्या?
हाड़ गले।
आफत में,
बह्र खले।

प्रीत करों,
बन पगले।

विव्हल मन,
शब्द टले।

दृषिट मिली,
सांझ ढले।

गर मुफलिस,
बात टले।
कण्टक पथ,
सत्य फले।
दुष्ट यहां,
हाथ मले।

के0पी0सत्यम / मौलिक एवं अप्रकाशित

!!! एक 'बापू फिर बुला मां शारदे !!!

!!! एक 'बापू फिर बुला मां शारदे !!!
बह्र-2122   2122   2122  212

प्यार जीवन में बढ़ा मां शारदे।
दर्द मुफलिस का घटा मां शारदे।।

कंट के रस्ते भी फूलों से लगे,
राम का वनवास गा मां शारदे।

भील-शोषित का यहां उध्दार हो,
एक 'बापू फिर बुला मां शारदे।

धर्म का रथ आस्मां को जा रहा,
गर्त में धरती उठा मां शारदे।

आततायी रोज बढ़ते जा रहे,
फिर शिवा-राणा बना मां शारदे।

लेखनी का रंग गहरा हो चटक,
घाव पर मलहम लगा मां शारदे।

दृढ़ करें संवेदना सदभाव से,
आप ही परमात्मा मां शारदे।

कर्म का फल भूल जाओं धर्म में,
भाव 'सत्यम साधना मां शारदे।

के0पी0सत्यम मौलिक व अप्रकाशित