Sunday 13 October 2013

निर्गुन

                                                         
 निर्गुन



रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।

नगर का शोर छोड़ कर ध्याउ,
जहा बजे शंख और ढोल।
रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।1

प्यार का घर ममता सब त्यागू,
फसू मनिदर और दरगाह।
रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।2

पाहन पूजू गिरि पर चढि़-चढि़,
भूखा रहू दिन और रात।,
रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।3

दर-दर ढ़ूढू नगर-सगर में,
ढूढू वन और रेगिस्तान।,
रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।4

सत्यम शिव मन में निहित है,
छोड़ो द्वेष और अभिमान।
रे सजनी! तुझ बिन चैन कहा।5


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