बह्र - 2122 2122 212
आज कल की धूप हल्की हो गई।
रंग बातें अब चुनावी हो गई।।
रंग बातें अब चुनावी हो गई।।
आईना तो खुद बड़ा जालिम यहां
सत्य खुल कर पारदर्शी हो गई।
सत्य खुल कर पारदर्शी हो गई।
प्यार का अहसास सुन्दर सांवरा,
दर्द बाबुल की कहानी हो गई।
दर्द बाबुल की कहानी हो गई।
जब कभी उम्मीद मुश्किल से जगे,
आस्था भी दूरदर्शी हो गई।
आस्था भी दूरदर्शी हो गई।
आईना को तोड़कर बोले खुदा,
श्वेत दाढ़ी आज पानी हो गई।
श्वेत दाढ़ी आज पानी हो गई।
शोर है कलियुग यहां दानव हुआ,
साधु सन्तों सी निशानी हो गई।
साधु सन्तों सी निशानी हो गई।
आज केवल धन गुमां अहसास है,
जोर की लाठी चलानी हो गई।
जोर की लाठी चलानी हो गई।
बोल 'सत्यम' सांस भी जब तक चले,
रहनुमाई बेईमानी हो गई।
रहनुमाई बेईमानी हो गई।
के0पी0सत्यम / मौलिक व अप्रकाशित
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